एक commercial फ़िल्म बनाने के लिए आपको क्या चाहिए?
बड़े बड़े एक्टर्स, पब्लिक को emotional करने वाला टॉपिक, अरिजीत सिंह के गाने वो भी देशभक्ति के ऊपर।
लेकिन कहानी जीरो, एक्टिंग डबल जीरो, राईटिंग में तीन जीरो और डिरेक्शन में तो जीरो गिनते गिनते ही भूल जाओगे आप।
समझ तो गए ही होंगे कि आज बात होने वाली हैं भुज की, अजय देवगन की नई फ़िल्म भुज को 13 अगस्त 2021 के दिन डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर शाम 5.30 pm बजे रिलीज़ किया गया था।
पहले हालाँकि इसे 14 अगस्त के दिन रिलीज़ करने का प्लान था वो भी सिनेमाघरों में लेकिन कोविड के कारण ऐसा सम्भव ना हो सका।
खैर ठीक ही हुआ जो भुज को सिनेमा में रिलीज़ ना करके ओटीटी पर रिलीज़ किया गया, फालतू का ज्यादा पैसा और ज्यादा वक्त तो खराब नहीं हुआ, वरना ज्यादा अफ़सोस होता।
अब आते हैं Bhuj पर।
देशभक्ति, इतिहास, सिपाही ये बॉलीवुड के सबसे पसंदीदा टॉपिक्स में से एक हैं।
15 अगस्त 26 जनवरी दोनों दिन तिरंगे की तारीफ़ करने के लिए फ़िल्म मेकर्स की लाइन लग जाती हैं लेकिन फ़िल्म बनाना और फ़िल्म बेचना दोनों बाहर से जितना एक जैसे दिखते हैं, असलियत में इनमें जमीन आसमान का फ़र्क़ होता हैं।
एक में पूरा ध्यान सिर्फ़ पैसा छापने में होता हैं तो दूसरे में टैलेंट और कॉन्टेन्ट का combination होता हैं।
और सच में दिल से बुरा लगता हैं इस नई फिल्म Bhuj को लेकर क्योंकि इसका काम हैं उल्लू बनाओ और पैसा कमाओ।
अजय देवगन एक हिट मशीन हैं और जैसे ही ये किसी फिल्म से जुड़ जाते हैं तो लोगों को यक़ीन हो जाता हैं कि कुछ दमदार देखने को मिलेगा।
लेकिन इस बार गुब्बारा हवा में उड़ा तो सही लेकिन उसमें बड़ा सा छेद निकला।
Bhuj The Pride of India हैं लेकिन सिनेमा के लिए तो किसी काले धब्बे के जैसी हैं, वो निशान जिसे चार बूंदों वाला उजाला सर्फ़ भी नहीं मिटा पायेगा।
Bhuj का एक लाइन में रिव्यू करूँ तो भारत और पाकिस्तान की दुश्मनी पर एक पूरी किताब लिखी जा सकती हैं और इसी किताब से एक चैप्टर को उठाकर Bhuj नाम की फ़िल्म की शक्ल दे दी गयी हैं।
Bhuj Movie Review in Hindi: Release Date, Cast, Story
Bhuj Cast (स्टार कास्ट)
फ़िल्म में अजय देवगन विजय श्रीनिवास कार्निक के कैरेक्टर को प्ले कर रहें हैं जो इंडियन एयर फोर्स में स्कवॉड्रन लीडर हैं।
प्रणीता सुभाष विजय की बीवी का किरदार निभा रहीं हैं जिसका नाम हैं उषा कार्निक।
रणछोड़ दास पागी फ़िल्म में इंडियन आर्मी स्काउट और रॉ एजेंट का किरदार हैं जिसे संजय दत्त ने निभाया हैं।
सोनाक्षी सिन्हा जहाँ सुंदरबेन जेठा के किरदार में हैं वहीं नोरा फतेही रॉ जासूस हीना रहमान का किरदार प्ले कर रहीं हैं।
शरद केलकर इंडियन आर्मी ऑफ़िसर राम करण नायर उर्फ़ RK के किरदार में दिखाई देंगे जबकि एमी विर्क फ्लाइट लेफ्टिनेंट विक्रम सिंह बाज जेठाज के किरदार को निभा रहें हैं।
इहाना ढिल्लों निमरत कौर के रूप में, महेश शेट्टी लक्ष्मन के रूप में और नवनी परिहार इंदिरा गांधी के रूप में हमें स्क्रीन पर दिखाई देगी।
Bhuj Story (कहानी)
पहले थोड़ा इतिहास की बात कर लेते हैं।
300 साधारण से इंसान मेरी ओर आपकी तरह जो एक ख़तरनाक युद्ध का हिस्सा बने थे। इंडियन एयर फोर्स ऑफ़िसर के साथ बिल्कुल कंधे से कंधा मिलाकर पाकिस्तान से लड़ गए भीड़ गए।
ये इतिहास का एक golden moment हैं जिसको ट्रिब्यूट देने के लिए बॉलीवुड ने एक कदम आगे बढ़ाया Bhuj के माध्यम से।
फोकस में डाल दिया युद्ध के हीरो विजय सर को और कुछ सपोर्टिंग कैरेक्टर्स जिनके बिना ये मिशन लगभग असंभव था।
Bhuj फ़िल्म शुरू हुई खत्म हुई लेकिन कब और कैसे? कुछ पता ही नहीं चला, सच में इतना बिखरा हुआ स्क्रीनप्ले मैंने अपनी ज़िंदगी में आज दिन तक कभी नहीं देखा।
स्क्रीन पर दिखने वाले एक्टर्स एक दूसरे से बातों में लगे हुए हैं लेकिन audience पर किसी का ध्यान ही नहीं हैं।
कैरेक्टर्स के बारे में सिर्फ दो तीन लाइन स्क्रीन पर लिख दिया जाता हैं उसके अलावा कौन हैं क्या हैं कहाँ से आया क्या कर रहा हैं? वो एक पहेली की तरह हैं।
इतना सारा confusion हैं कि कहीं कहीं पर फ़िल्म को रोककर सोचना पड़ता हैं की आख़िर फ़िल्म में हो क्या रहा हैं?
बॉलीवुड की पुरानी बीमारी हैं कि फ़िल्म बनाने से ज्यादा उसको बेचने पर मेहनत करना इसीलिए हर 10-15 मिनट में गाना सुनने को मिलेगा जिसके द्वारा ये याद दिलाया जाता हैं कि हम देशभक्ति कर रहें हैं सिनेमा को गोली मारो।
मूड़ तो तभी ख़राब हो गया था जब युद्ध के बीच में इंडियन आईडल का competition शुरू हो गया, सच में soldiers से लेकर सोनाक्षी सिन्हा हर कोई पाकिस्तान को छोड़कर अन्नू मलिक को impress करके मुम्बई आना चाहते हैं बस।
म्यूजिक से मुझे बिल्कुल भी कोई problem नहीं हैं लेकिन इस तरह की देशभक्ति फिल्मों में उसे इस्तेमाल करने का एक तरीका होता हैं जैसे शेरशाह में किया गया था।
फ़िल्म के बैकग्राउंड में बजाओ ना गाने किसने मना किया? कम से कम audience को तो महसूस करने दो हर बार होंठ हिलाना जरूरी तो नहीं हैं ना, ये चीज़ फ़िल्म को वाकई नकली बना देती हैं बॉस।
नकली से याद आया, Bhuj में जो साइड एक्टर्स हैं उनसे ज्यादा expression और सच्चाई आपको शिनचैन के चेहरे पर मिल जाएगी मतलब वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया हैं Bhuj ने सबसे नकली और फालतू की साइड एक्टर्स की casting में।
पाकिस्तान में बैठे लोग उनका सिर्फ एक काम हैं किसी भी डायलॉग को जनाब से शुरू करना और जनाब पर ख़त्म।
दुश्मन से डर तो छोड़ो अगर ये real life में मेरे सामने आ जाएं तो में तो पेंट उतार कर भाग जाऊँगा।
मुझे पता हैं कि अब आप ये सोच रहें होंगे कि Bhuj इतनी ख़राब फ़िल्म तो नहीं हो सकती, इस भाई को तो हर चीज़ से दिक्कत हैं।
Bhuj इतनी भी ख़राब फ़िल्म नहीं हैं, काश ऐसा में बोल पाता क्योंकि मेरे पास कुछ चार पॉइंट्स हैं जिन्हें पढ़ लो एक बार फिर दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
पहला पॉइंट, soldier और हीरो में अंतर होता हैं लेकिन बॉलीवुड को ये बात कौन समझाए?
अपने संजू बाबा एक scene में बिना किसी protection के सीधा 100-200 पाकिस्तानी soldiers के बीच में कूद जाते हैं और वो भी हाथ में कुल्हाड़ी लेकर।
Bhuj अगर एक्शन फिल्म होती तो बड़ा मज़ा आता मेरे दोस्त लेकिन इतिहास पर आधारित फिल्म को मजाक बना कर रख दिया हैं इस scene ने।
मैंने अपनी ज़िंदगी में कोई युद्ध तो नहीं लड़ा लेकिन इतना जानता हूँ की बॉर्डर पर जो लोग वर्दी पहनकर खड़े हैं उनके दिल में हिम्मत के साथ साथ दिमाग में एक प्लानिंग भी होती हैं।
दूसरा पॉइंट, किसी भी देशभक्ति फ़िल्म को सबसे ज्यादा जरूरत होती हैं emotions की और emotions आते कहाँ से हैं? डॉयलोग्स से बातचीत से एक कैरेक्टर की दूसरे कैरेक्टर से।
सही कहा ना मैंने?
आप यक़ीन नहीं करोगे Bhuj के पहले हाफ़ में अजय देवगन के मुँह से मुश्किल से 5-6 डॉयलोग्स निकलते हैं वो भी पुराने घिसे पिटे type के जो स्कूल में 15 अगस्त पर बच्चे अपने निबंध में लिख देते हैं।
शरद केलकर और अजय देवगन की मैजिकल जोड़ी जिसने तान्हाजी को स्पेशल अनुभव बना दिया था, उनके बीच में कोई बातचीत ही नहीं होती जबकि दोनों एक ही scene में नजर भी आते हैं।
और भईया वो emotions तो emotions होते ही नहीं हैं जिनको बार बार चीखकर audience पर थोपने की कोशिश की जाए, वो naturally feel होने चाहिए scene देखकर अपने आप अंदर से निकल आए, इस चीज का फ़िल्म से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं हैं।
तीसरा पॉइंट, फ़िल्म का नाम शायद गलत रख दिया गया क्योंकि पहले हाफ़ में भारत से ज्यादा पाकिस्तान के scene दिखाए जाते हैं वो भी बिना मतलब के जिनकी जरूरत कहानी को बिल्कुल नहीं थी।
इधर Bhuj में क्या प्लानिंग चल रहीं हैं, एयर फोर्स ऑफिसर्स और आम जनता के बीच रिश्ते कैसे हैं, Bhuj आखिर इतना अहम क्यों हैं? वो सब भूल जाओ बस पूरा ध्यान पाकिस्तान मुर्दाबाद पर लगा दो।
अरे भाई फ़िल्म का कॉन्टेन्ट कहाँ हैं? हमें देखने थे 1971 युद्ध के वो किस्से जिनके बारे में पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
वो बस अंत के 10-15 मिनट में दिखाए जाते हैं जिसका अनुभव ये बेकार से VFX बर्बाद कर देते हैं।
एक्शन के नाम पर कुछ भी स्पेशल नहीं मिलता इन scenes में ऐसा महसूस होगा जैसे कोई वीडियो गेम्स खेल रहें हो आप।
जो सामने आए उड़ा दो, कोई एहसास नहीं कोई डॉयलोग्स नहीं सिर्फ कार्टून वाली गोलियाँ।
और चौथा पॉइन्ट, जब किसी फ़िल्म में कोई हीरो होता हैं तो सामने विलेन भी तो होना चाहिए ना दोस्त, लेकिन Bhuj ऐसी पहली फ़िल्म बन गयी हैं जिसमें विलेन स्क्रीन पर नहीं बल्कि उसके पीछे छुपा बैठा हैं और वो हैं अपने डायरेक्टर भईया।
कितना अत्याचार मचाओगे आप? एक सीधी साधी कहानी जो पहले से ही आपके पास मौजूद हैं उसको एक पज़ल की तरह क्यों प्रस्तुत कर रहें हो?
एक्टिंग और परफॉर्मेंस
पोस्टर पर बड़े बड़े एक्टर्स मौजूद हैं जिनको देखकर लगा था कि Bhuj युद्ध फिल्मों के मामले में सारे रिकार्ड्स तोड़ डालेगी लेकिन हकीकत में कौनसा एक्टर कहाँ हैं क्यों हैं क्या कर रहा हैं कैसे कर रहा हैं? कुछ समझ ही नहीं आ रहा।
इतनी बड़ी स्टार कास्ट को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया गया।
अजय देवगन की सबसे कमजोर फ़िल्म हैं Bhuj उनका स्क्रीन टाइम भी काफी कम हैं सिर्फ ट्रक चलाते हुए नज़र आ जाते हैं।
हकीकत में विजय सर इस पूरे Bhuj वाले युद्ध के मास्टरमाइंड थे लेकिन अजय देवगन को उतना फोकस में डाला ही नहीं गया, उनकी चालाकी, बहादुरी, देश के लिए प्यार कुछ भी नज़र नहीं आएगा।
नोरा फतेही जिनसे काफ़ी उम्मीदें थी क्योंकि बंदी पहली बार कोई अहम रोल प्ले कर रहीं हैं आइटम सॉन्ग नहीं लेकिन उनकी एक्टिंग ने तो मेरे होश ही उड़ा दिए।
मतलब डॉयलोग्स बोलने का तरीका और चेहरे का हावभाव दोनों एकदम अलग अलग और कहने के लिए ये आलिया भट्ट वाला कैरेक्टर प्ले कर रहीं थी राजी फ़िल्म से।
उन लोगों से हाथ जोड़कर request हैं जो फिल्मों में एक्टर्स cast करते हैं, सर इतना जहर दिखाओगे तो बेचारा किंग कोबरा क्या करेगा?
अच्छे एक्टर्स की कमी नहीं हैं हिंदी सिनेमा में अगर नाम नहीं मिल रहें तो में भेज दूँगा आपको।
बाकी सोनाक्षी सिन्हा को में इस रिव्यू में ठीक उसी तरह नजरअंदाज कर रहा हूँ जिस तरह आप Bhuj देखते वक्त करने वाले हो।
जबकि हकीकत में Bhuj वाले युद्ध में इनका कैरेक्टर सबसे अहम था लेकिन फ़िल्म में इनको मजाक बना दिया गया।
रावण को मारकर हिंदुस्तान जिंदाबाद बोल रहीं हैं, कोई sense हैं इस बात का?
बच गए संजू बाबा, इनको जो भी मिला पूरी मेहनत से कर दिया अब इसमें इनकी कोई गलती थोड़े ही हैं की फ़िल्म के डायरेक्टर दो सौ तीन सौ लोगो से अकेले भिड़ाने वाले हैं इनको और वो भी बंदूक और तोप के सामने कुल्हाड़ी पकड़ाकर।
कितने तेजस्वी लोग हैं ये?
रेटिंग
तो दोस्तों मेरी तरफ से Bhuj को मिलेगा 5 में से 1 स्टार वो भी इसलिए क्योंकि Bhuj एक अहम चेप्टर हैं अपने इतिहास का, जिस पर हमें गर्व हैं और लोगों को इस बारे में अवगत करवाने के लिए धन्यवाद।
अब आ जाओ नेगेटिव्ज पर, एक स्टार तो कटेगा real life में मौजूद एक रोंगटे खड़े करने वाली कहानी को पूरी तरह तहस नहस करने के लिए और ये बेकार से VFX जो आँखों के लिए कोरोना के बराबर हैं।
एक स्टार फ़िल्म बनाने की जगह बेचने पर ध्यान लगाने के लिए audience पागल नहीं हैं हम देशभक्ति महसूस करने में यकीन रखते हैं ना कि उसको जबरदस्ती दिखाये जाने में।
एक स्टार इतनी बड़ी स्टार कास्ट स्पेशली अजय देवगन जैसे एक्टर को बिल्कुल भी सही ढंग से इस्तेमाल ना करने के लिए मतलब ये अजय देवगन के कैरियर की सबसे कमजोर फ़िल्म होगी।
बाकी नकली साइड एक्टर्स तो ऑस्कर जीत ही जायेंगे कार्टून फिल्मों में।
और एक स्टार कटेगा emotions को पूरी तरह बर्बाद करने के लिए, सच में Bhuj के एक भी scene में कुछ भी महसूस नहीं होगा और ना ही आप किसी कैरेक्टर के साथ खुद को कनेक्ट कर पाओगे।
इससे अच्छा अरिजीत सिंह की आवाज में जो गाना आया हैं यूट्यूब पर “देश मेरे” आँखे बंद करके वो सुन लेना, सिर्फ 3 मिनट में 2 घण्टे से ज्यादा emotions मिल जाएंगे आपको।