Jhund Movie Review in Hindi

आज के ब्लॉग में हम नई फ़िल्म Jhund का रिव्यू करेंगे जो बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन की मोस्ट अवेटेड फ़िल्म थी।

फ़िल्म Jhund को फाइनली 4 मार्च को थिएटर्स में रिलीज़ के दिया गया हैं।

हम भारतीयों का सबसे पसंदीदा काम हैं खुद को छोड़कर दूसरों को आँकना, हम सब इस टैलेंट के साथ पैदा होते हैं।

अब ऐसी सुपरपॉवर के ऊपर बॉलीवुड में कोई फ़िल्म ना बनें ऐसा कैसे हो सकता हैं।

आपने अब तक एक दो या तीन हीरो वाली फिल्में तो बहुत देखी होंगी लेकिन Jhund में हीरो की भीड़ मिलेगी, गिनते गिनते थक जाओगे आप।

Jhund Movie Review in Hindi

Jhund Movie Cast (स्टार कास्ट)

  • अमिताभ बच्चन – विजय बोराडे
  • विक्की कादियान – अभिजित बोराडे (विजय का बेटा)
  • अभिनय राज सिंह – नवीन
  • आकाश थोसर – सम्भ्या
  • रिंकू राजगुरु
  • किशोर कदम
  • तानाजी गलगुण्डे
  • सोमनाथ अवघाड़े
  • भरत गनेशपुरे
  • सूरज पंवार
  • गणेश देशमुख

Jhund Movie Details (जानकारी)

  • डायरेक्टर – नागराज मंजुले
  • राइटर – नागराज मंजुले
  • प्रोड्यूसर – भूषण कुमार, कृष्ण कुमार, संदीप सिंह, राज हीरेमठ, सविता राज हीरेमठ, नागराज मंजुले, गार्गी कुलकर्णी, मीनू अरोड़ा
  • सिनेमेटोग्राफी – सुधाकर रेड्डी, यक्कन्ति
  • म्यूजिक – साकेत कानेतकर, अजय-अतुल
  • रिलीज़ – थिएटर
  • रिलीज़ डेट – 4 मार्च 2022
  • रनिंग टाइम – 176 मिनट
  • बजट – 22 करोड़

Jhund Movie Story (कहानी)

फ़िल्म Jhund की कहानी शुरू होती हैं कुछ अजीबोगरीब प्राणियों के साथ जो दिन के उजाले में या रात के अंधेरे में हर तरह की चीज पार करने में एक्सपर्ट हैं।

बोले तो चोरी करने में उस्ताद हैं सारे के सारे।

कभी कोयला, कभी मोबाइल तो कभी गले में चमकने वाली सोने की चेन, इन एक्सपर्ट्स की नज़रों से कोई नहीं बच पाया आज तक।

लेकिन फिर इनकी जिंदगी में एक नई चीज की एंट्री होती हैं, फुटबॉल।

मिस्टर विजय, ये वो नाम हैं जिनकों पूरा का पूरा क्रेडिट मिलना चाहिए, इस चीज को इन चोरी के उस्तादों की ज़िंदगी में लाने का।

मिस्टर विजय वैसे तो एक छोटे से कॉलेज में सिर्फ मामूली से एक स्पोर्ट्स कोच हैं लेकिन इनके दिमाग में बड़ी गहरी शैतानी चल रहीं हैं।

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वो ये की फुटबॉल के रास्ते विजय सर इन अजीबोगरीब लोगों से उनकी सबसे प्यारी चीज़ छिनने की फ़िराक में हैं, चोर से उसकी चोरी की आदत।

सुनने में शायद नामुमकिन लगे लेकिन ऐसा होने भी लगता हैं और विजय सर की मेहनत रंग लाना शुरू करती हैं।

लेकिन वो कहते हैं ना कि जब कुछ अच्छा हो रहा हो तो कोई ना कोई उसको बिगाड़ने जरूर बीच में आ जाता हैं।

तो बस यहाँ भी कुछ ऐसा ही होता हैं।

इस कहानी में ट्विस्ट लेकर आता हैं एक छोटा सा ब्लेड यानी पत्ती जो विजय सर के इरादों पर खून फ़ैला देता हैं जिससे इस कहानी में दो सबसे बड़े विलेन की एंट्री हो जाती हैं।

पहला विलेन मौत और दूसरा पुलिस।

अगर आपको फ़िल्म Jhund की कहानी समझ आ गयी तो बढ़िया लेकिन अगर समझ नहीं आई तो ओर भी बढ़िया क्योंकि में खुद भी यहीं चाहता हूँ।

आपने फ़िल्म Jhund का पोस्टर तो देखा ही होगा, उसमें साफ साफ लिखा हैं “बड़ी फिल्म बड़े पर्दे के लिए।”

तो जाओ अपने नज़दीकी थिएटर और पता लगाओ की आखिर इन बस्ती वालों के साथ हुआ क्या?

देखों बॉस एक बात में पहले ही साफ कर दूँ की अमिताभ बच्चन की इस फ़िल्म Jhund को मामूली फ़िल्म समझने की गलती मत करना।

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बाहर से इस फ़िल्म को आप बाकी मोटिवेशनल फ़िल्मों के जैसे समझने की गलती कर सकतें हो, वो जायज़ भी हैं।

लेकिन फ़िल्म Jhund की अंदर की कहानी वास्तविकता में कुछ ओर ही हैं, एकदम अलग।

ये जो बस्ती वाले लोग हैं ना, इनकी शक्ल को जब आप देखोगें तो दिल में शायद घबराहट सी पैदा होने लगे क्योंकि ये लोग सुरक्षित वाली फ़ीलिंग्स को ख़त्म सा कर देते हैं।

एकदम मवाली लगते हैं।

अब ऐसे लोगों की बेकस्टोरी सुनने में भला किसको दिलचस्पी होगी?

बस यहीं जादू हैं फ़िल्म Jhund का, ये आपके दिमाग़ में पहले ही छप चुके अखबार की हेडलाइन्स को परमानेंट बदल देती हैं।

कोई मोटिवेशन नहीं हैं और ना ही कुछ सीखने को हैं, यहाँ सिर्फ और सिर्फ एक खेल हैं जिसमें अगर जीत गए तो जिंदगी मिलेगी और अगर हार गए तो सीधे मौत।

कुछ वक्त पहले एक फ़िल्म आई थी सैराट, वहाँ भी जिंदगी और मौत की रेस लगी थी।

बस ये फ़िल्म Jhund भी उस फिल्म के डायरेक्टर नागराज सर की ही हैं जो एक बार फिर से आपको हैरान परेशान करने के मूड में हैं।

वहाँ आपने शायद फ़ोन में फिल्टर लगाकर फ़ोटो खींची होगी लेकिन यहाँ Jhund में कोई फिल्टर नहीं हैं।

जो सच हैं, हक़ीक़त हैं, उसे जैसे का तैसा बिना किसी मिलावट के प्रस्तुत किया गया हैं।

ये जो छोटे छोटे लड़के बस्ती वाले गुंडों का कैरेक्टर्स प्ले कर रहें हैं इनकी परफॉर्मेंस इतनी गजब हैं ना कि घर पर आकर मैंने पूरे गूगल को छान मारा की ये सब वाकई में कलाकार हैं या फिर कोई स्लमडॉग मिलेनियर टाइप के बन्दे हैं।

jhund movie characters

इनके बोलने का तरीका, चलने का ढंग या फ़िर आँखों में बाकी दुनियाँ से अलग होने का डर सब कुछ साफ़ दिखाई देता हैं।

एकदम नेचुरल परफॉर्मेंस।

बस फ़िल्म Jhund की असली खासियत यहीं हैं कि वो इन लोगों को बाकी बॉलीवुड फ़िल्मों की तरह बदलना नहीं चाहती और ना ही उनको मेकअप लगाकर साफ सुथरे कपड़े पहनाकर विलेन से हीरो बनाना चाहती हैं।

बल्कि ये फ़िल्म सिर्फ आपको ये बताना चाहती हैं कि बस्ती में पैदा होना किसी की चॉइस नहीं हैं और ना ही उन्होंने भगवान से ऐसा मांगा था।

हाँ लेकिन वो हमेशा उसी बस्ती में रहना चाहता हैं या उससे बाहर निकलकर अपनी ज़िंदगी को बदलना चाहता हैं, ये पूरी तरह उसकी चॉइस हैं।

बाकी अगर आप फुटबॉल लवर हो और हर फुटबॉल मैच के शुरू होने से पहले ही टीवी चालू करके बैठ जाते हो फिर दोस्त आपका मजा कई गुना हो जाएगा Jhund में।

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और इस फ़िल्म में इस खेल के इमोशन्स हमारी ज़िंदगी के इमोशन्स को ओर ज्यादा real कर देंगे।

और अगर बात करें शहंशाह अमिताभ बच्चन की तो फिर आपको तो पता ही होगा, जहाँ ये खड़े हो जाते हैं लाइन वहीं से शुरू होती हैं।

सर जी का कॉन्टेन्ट का चुनाव करने का तरीका वाकई जबरदस्त हैं, मानना पड़ेगा।

ये जनाब सिर्फ ऐसी फ़िल्में करते हैं जो reel जिंदगी ही नहीं बल्कि real जिंदगी में भी फ़र्क डाल सकती हो।

इन्हें कोई लालच नहीं हैं one man show करने का बल्कि ये पूरी टीम को अपना टैलेंट दिखाने का मौका देते हैं।

और फिर जब अमिताभ बच्चन के डॉयलोग्स के पीछे मराठी वाइब्स देने वाला तोड़फोड़ बैकग्राउंड म्यूजिक बजता हैं ना तो कसम से रौंगटे खड़े हो जाते हैं।

किसी बॉलीवुड फ़िल्म को देखकर ऐसी फ़ीलिंग्स बहुत वक्त के बाद आई हैं यार।

Jhund Movie Review: क्या अच्छा क्या बुरा?

फ़िल्म Jhund में real कहानी को बिना किसी जादू की छड़ी घुमाए सिर्फ और सिर्फ real तरीके से दिखाया गया हैं जिसमें वाकई कमाल का काम किया गया हैं।

फुटबॉल जैसे खेल को जिंदगी से जोड़कर फ़िल्म को सिर्फ बोरिंग और मोटिवेशनल ना बनाकर एंटरटेनिंग तरीके से अपने मैसेज को लोगों के सामने रखा गया हैं।

और फ़िल्म के कलाकारों की एक्टिंग के तो क्या ही कहने।

अमिताभ बच्चन तो हीरा हैं ही लेकिन फ़िल्म Jhund की सपोर्टिंग कास्ट तो सच में फायर हैं बॉस।

इतना दम तो पूरी फिल्म इंडस्ट्री में नहीं हैं जितना इन लड़कों में हैं।

इसके अलावा फ़िल्म Jhund का बैकग्राउंड म्यूजिक इस फ़िल्म की जान हैं।

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हालांकि शायद आपको फ़िल्म के डॉयलोग्स में वो इमोशन्स महसूस ना हो लेकिन इसका म्यूजिक आपको हर बार कुछ ना कुछ नया महसूस करवायेगा।

वहीं फ़िल्म Jhund के सेकंड हाफ़ को थोड़ा एक्स्ट्रा लम्बा खींचा गया, यहाँ डायरेक्टर सर दिखाना तो बहुत कुछ चाहते थे लेकिन उतना प्रभावशाली तरीके से दिखा नहीं कर पाए जितनी कि उम्मीद थी।

अभी देखों, सारे लोग इस फ़िल्म को इसके कलेक्शन से नापतौल कर रहें हैं।

सिर्फ एक करोड़ कमाया हैं और सुपर फ्लॉप हो गयी।

सारे के सारे लोग कॉन्टेन्ट कॉन्टेन्ट चिल्लाते रहते हैं लेकिन देखता कोई नहीं हैं।

उन्हें बस वहीं देखना होता हैं जिसके ख़िलाफ़ वो ट्विटर पर जाकर हैशटैग्स को ट्रेंड कर पाएं।

समझदार को इशारा काफ़ी हैं।

देखों दोस्त, अगर वाकई बढ़िया कॉन्टेन्ट देखना चाहते हो तो लोगों के इस शोर को नजरअंदाज करो और मोबाइल उठाकर फ़िल्म Jhund का टिकट बुक करो।

वादा कर सकता हूँ, आपको पछतावा नहीं होगा।

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