Pushpa vs 83 | आख़िर फ़िल्म 83 फ्लॉप क्यों हुई?
दुनियाँ में एक चीज़ जो कभी नहीं बदल सकती, वो हैं ख़ुद दुनियाँ का बदलना, और अब ये नियम फ़िल्म इंडस्ट्री पे लागू हो चुका हैं। पूछो कैसे?
83, बॉलीवुड की अब तक की सबसे बड़ी मूवीज में से एक, इतना बढ़िया टॉपिक, इतने सारे एक्टर्स, इतना ज्यादा बजट।
रिजल्ट क्या निकला? लोगों को फ़िल्म पसन्द ही नहीं आई। यहाँ तक कि रिव्यूज़ भी काफी अच्छे आए थे और रणवीर सिंह की एक्टिंग भी बेमिसाल थी।
और तो और, सिनेमा होल्स ने बाकी फ़िल्मों के शोज़ काटकर 83 को ख़ूब सारे शोज़ भी दिए थे।
तो दूसरी तरफ तेलुगु इंडस्ट्री की फ़िल्म Pushpa, जिसको हिंदी डबिंग के साथ नॉर्थ मार्केट में रिलीज़ किया गया, प्रोमोशन एकदम जीरो था।
और तो और, 99% लोग स्पाइडर मैन के लिए एक्साईटेड थे, एक ऐसी फ़िल्म जिसके साथ कोई भी अपनी फ़िल्म क्लेश करने से डर रहा था।
उसके बाद भी अल्लु अर्जुन की फ़िल्म सिर्फ हिंदी बेल्ट में अब तक 60 करोड़ से भी ज्यादा का बिजनेस कर चुकी हैं और पूरे इंडिया में तो 200 करोड़ के पार हो गया।
तो सौ टके का सवाल ये, वहीं ऑडिएंस, वहीं मार्केट, बॉलीवुड फ़ेल तो Pushpa पास कैसे?
भईया 83 फ़िल्म का कलेक्शन इतना कम रह कैसे गया?
200 करोड़ से भी ज्यादा में बनी ये फ़िल्म, ले देके 50 करोड़ को पार कर पाई।
आपने पूछा, तो मैंने सोचा, थोड़ा अंदर घुसकर रिसर्च मारा जाए, और फाइनली मेरे पास कुल 8 कारण हैं जो मेरे हिसाब से 83 को बर्बाद करने में सबसे बड़ा रोल प्ले करते हैं।
Pushpa vs 83 । फ़िल्म 83 के फ्लॉप होने के कारण

पहला कारण:- ओवर कॉन्फिडेंस
बॉलीवुड की ये बीमारी काफ़ी पुरानी हैं। कुछ भी बना दो, किसी को भी फ़िल्म में डाल दो, कहानी छोड़कर सिर्फ आइटम सॉन्ग पर पैसा घुसा दो।
इसके बाद भी इनको भरोसा हैं की लोगों के पास इतना फालतू टाइम हैं, और दिमाग में तो उनके सिर्फ कचरा भरा हुआ हैं, तो फ़िल्म देखने तो भईया ये लोग आ ही जायेंगे।
साउथ की मूवीज़ को वैसे भी सबटाइटल्स के साथ कौन देखने वाला हैं? बाद में हम खुद उसका रीमेक बनाके 200-300 करोड़ का बिजनेस छाप देंगे, किसी को पता भी नहीं चलेगा।
दूसरा कारण: गोल्डमाइन्स
मेरी तरह जो साउथ फ़िल्म लवर्स हैं वो इस नाम को काफ़ी अच्छे से जानते पहचानते होंगे।
यहाँ आप किसी खदान के बारे में मत समझ लेना, बल्कि यूट्यूब के सबसे पॉपुलर चैनल्स में से एक हैं ये, जहाँ हिंदी डबिंग में साउथ मूवीज बेहद आसानी से फ्री में देख सकतें हो आप।
अब खेल ये हैं गुरु, की फ़िल्म Pushpa के हिंदी राइट्स गोल्डमाइन्स के पास हैं।
तो फ़िल्म के टीज़र से लेकर ट्रैलर तक सारे अपडेट्स हिंदी ऑडिएंस तक गोल्डमाइन्स के द्वारा पहुँचाए गए।
यहाँ से Pushpa की पॉपुलैरिटी नार्थ इंडिया में एकदम से बढ़ गयी।
यूट्यूब पर मिलेगी आपको एक्टिव ऑडिएंस, जो फ़िल्मों में वाकई रुचि रखती हैं।
इसलिए जैसे ही Pushpa थिएटर में आई, लोग भाग के पहुँच गए।
तीसरा कारण: प्रिडिक्टेबल कहानी
देखो, 83 कैसे शुरू होगी से लेकर कैसे ख़त्म होगी? हर चीज़ लोग पहले से ही जानते हैं।
लेकिन फ़िल्म का सब्जेक्ट क्रिकेट हैं, जिसमें देशभक्ति के दो तीन गाने मिला दिए गए, साथ में इमोशनल्स का ब्लैकमेल।
इसके बाद लोग खुद को थिएटर आने से कैसे रोकेंगे?

इसको ही तो बोलते हैं सेफ सिनेमा, जिसमें बॉलीवुड पैसे लगाकर पैसे कमाना चाहता हैं।
इन्वेस्टमेंट स्कीम समझ लो, वो एक हफ़्ते में पैसे डबल, बस वहीं।
दूसरी तरफ़ Pushpa की स्टोरीटेलिंग इसकी असली पॉवर हैं।
कहानी क्या होगी से लेकर कैसे दिखाई जाएगी तक, किसी को कोई आईडिया नहीं था। रिस्क बहुत ज्यादा था, लेकिन सरप्राइज फ़ेक्टर, दस में से दस।
आप खुद सोचो, एक कहानी जिसका A टू Z, सब कुछ पहले से पता हैं वर्सेज़ एक नया सब्जेक्ट, जिसका सिर्फ आप नाम जानते हो, काम कैसा होगा? कुछ नहीं पता।
दोनों में से किस पर पैसे खर्च करना चाहोगे आप?
चौथा कारण: बॉयकॉट बॉलीवुड
दोस्त, ये चीज़ अच्छी तो बिल्कुल नहीं हैं, लेकिन जरूरी बहुत ज्यादा हैं।
स्पेशली अब जब बॉलीवुड की फिल्में सिर्फ स्टार किड्स को लॉन्च करने की मशीन बनके रह गयी हैं।
टैलेंट, एक्टिंग जैसी चीजें बाद में, पहले सरनेम। नाम के पीछे कपूर, खान, भट्ट, पांडे तो आपका कैरियर शुरू होगा किसी बड़े प्रोड्यूसर और बड़े बजट वाली फ़िल्म के साथ।
अब देखों, रबर को आप सिर्फ एक लिमिट तक खींच सकतें हो, ज्यादा ताकत लगाओगे तो वो टूट जाएगा।
बस सुशांत सिंह राजपूत के बाद अब ऑडिएंस का दिमाग हिल चुका हैं।
नेपोटिज्म का सफ़ाई अभियान, ये सामने से इतना नज़र नहीं आता, लेकिन 83 का कम कलेक्शन और साथ में सलमान भाई की Antim का 50 करोड़ में सिमट जाना।
ये प्रूफ़ करता हैं कि पब्लिक अब ओर उल्लू नहीं बनेगी।
फ़िल्में चलानी हैं तो एक्टर को लेकर आइए, रिश्तेदार को नहीं।
पाँचवा कारण: ट्रैलर
इस चीज़ पर ज्यादा फ़ोकस नहीं डाला जा रहा हैं, लेकिन किसी भी फ़िल्म के पास या फ़ेल होने में सबसे महत्वपूर्ण रोल होता हैं यूट्यूब पर रिलीज़ किए गए टीज़र, ट्रैलर का।
83 का ट्रैलर देखो, सब कुछ दिखा दिया गया। वेस्टइंडीज की टीम से लेकर कपिल देव का इंटरव्यू, साथ में सचिन तेंदुलकर का बचपन।
भईया जी अब थिएटर में जाके क्या नया देख लोगे आप?
दूसरी तरफ़, Pushpa का ट्रैलर देखो, घण्टा कहानी क्या होगी? कुछ भी पता नहीं चलेगा। सिर्फ अंदाजा लगा सकतें हो, वो भी सिर्फ 10 प्रतिशत।
बाक़ी बचे 90 प्रतिशत के दर्शन करने के लिए थिएटर जाना पड़ेगा।
छठा कारण: ओटीटी फ़ेक्टर
ये वाला पॉइंट ना सिर्फ प्रेजेंट बल्कि इंडियन सिनेमा का फ्यूचर बदलने वाला हैं। घर पे फ़िल्म देखो, बिना किसी टेंशन के पूरी फैमिली के साथ।
बैठकर नहीं लेटकर, साथ में चाय, कॉफ़ी, पकौड़े या फिर पूरा डिनर, आपकी चॉइस।
और सबसे इम्पोर्टेन्ट, पूरे महीनें रोज तीस के तीस दिन नई फ़िल्म देखों, वो भी सिर्फ 100-200 रुपये में।
स्पेशली अब, जब कोविड़ के बाद थिएटर और ओटीटी के बीच जो विंडो पहले जहाँ 2 महीनें की थी, अब सिर्फ 4 हफ़्तों की रह गयी हैं।
चॉइस एकदम सिंपल हैं। हर हफ़्ते किसी नई फ़िल्म को थिएटर में देखो 500 रुपए का टिकट ख़रीदकर।
या फ़िर किसी ओटीटी प्लेटफॉर्म का सब्सक्रिप्शन ले लो और नई फ़िल्म का 20-25 दिन इंतज़ार कर लो।
वो पड़ेगी आपको एकदम फ्री, सहपरिवार देखिए।
सातवां कारण: रीमेक का चक्कर
बॉलीवुड का नाम बदलकर आप रीमेकवुड रख सकतें हो।
हर साल इतनी फिल्में दुबारा बनाई जाती हैं यहाँ पर, एकदम कॉपी पेस्ट।
ओर तो ओर, कॉन्फिडेंस इतना ज्यादा की ओरिजिनल फ़िल्म यूट्यूब पर एकदम फ्री देखने को मिल जाएगी वो भी हिंदी डबिंग में।
जिसको पहले ही करोड़ो लोग देख चुके हैं, उसको भी रीमेक करने की हिम्मत हैं अपने बॉलीवुड में। कारण, सिर्फ और सिर्फ पैसा छापना।
अब देखो, ये पहले तो चल गया, लेकिन कोविड़ के बाद पब्लिक ने साउथ मूवीज को इतना ज्यादा एक्सप्लोर कर लिया हैं की अब लोगों को ओरिजनल कॉन्टेंट चाहिए।
ये 83 की तरह बॉयोपिक बनाने से काम नहीं चलेगा, कुछ फ्रेश लेके आईए, फ़िल्म अंधाधुंध टाइप का।
वरना कॉपी पेस्ट करके जो फ़िल्में बन रहीं हैं वो एक्टर की फ़ीस चुकाने तक का भी बिजनेस नहीं कर पाएंगी।
आठवाँ कारण: साउथ एक्टर्स की परफॉर्मेंस
और अब फाइनली आठवां कारण, जो सबसे बड़ा रोल प्ले करता हैं, बॉलीवुड का गेम ऑवर करके तेलुगू इंडस्ट्री को चैम्पियन बनाने में।
अल्लु अर्जुन, सिर्फ नाम ही काफ़ी हैं। पुष्पा राज के रूप में बन्दे का परफॉर्मेंस इतना सॉलिड हैं, जिसके सामने पूरा बॉलीवुड एकदम फिनिश, कोई कॉम्पिटिशन ही नहीं हैं।
Pushpa पहले दिन से हिट नहीं थी, लेकिन जिसनें फ़िल्म को देखा, वो खुद को दुबारा थिएटर जाके अल्लु अर्जुन के लिए सीटियाँ तालियाँ बजाने से रोक नहीं पाया।
यहाँ तक कि फ़िल्म को नेगेटिव रिव्यूज़ भी दिए गए थे जबरदस्ती और इसको नीचे गिराने का पूरा एजेंडा भी चलाया गया।
फिर भी सिर्फ एक अकेला बन्दा अल्लु अर्जुन खड़ा रहा, ये सच में एक ब्रांड बन गए हैं।
अल्लु अर्जुन का क्रेज नार्थ में काफी पहले से इसलिए भी हैं क्योंकि गोल्डमाइन्स पर इनकी फ़िल्में बहुत मिलेंगी आपको, हिंदी डबिंग में।
और हर फ़िल्म में इनका परफॉर्मेंस होता हैं कतई ज़हर।
अब पहली बार अपने स्टार को बड़ी स्क्रीन पर देखने का मौका मिलेगा और फैन्स थिएटर ना जाएं, ऐसा हो ही नहीं सकता।
अल्लु अर्जुन ने खतरे की घण्टी बजा दी हैं उन एक्टर्स के लिए, जो अपने नाम के पीछे बड़े बड़े सरनेम्स लेकर घूम रहें हैं।
तो दोस्तों, ये थे मेरे पॉइंट्स, जिनकी वजह से 83 का हवाई जहाज उड़ने से पहले ही जमीन पर गिरकर क्रेश हो गया।
अब बारी आपकी हैं, कॉमेंट्स में अपने पॉइंट्स बताओ या फिर ऊपर दिए गए पॉइंट्स में आपके हिसाब से सबसे इम्पोर्टेन्ट कौनसा हैं? जिसने Pushpa को ब्लॉकबस्टर तो 83 को फ्लॉप कर दिया।